हनुमान जी की ऐसी प्रतिमा जो पूरी दुनिया में नहीं
देश दुनिया में हनुमान जी की बहुत सी उंची-उंची और बड़ी-बड़ी प्रतिमाएं आपने देखी होंगी. मगर दुनिया में एक ऐसी भी मारुती नंदन की प्रतिमा है जो काफी भारी भरकम है. जहां हनुमान जी विश्राम अवस्था में लेटे हुए है. कहा जाता है इस तरह की अवस्था में हनुमान जी की प्रतिमा कही और नहीं. भारत में कई दार्शनिक स्थल, मंदिर तीर्थ स्थल है जो अपने आप में एक अलग ही महत्व रखते है इन मंदिरों तीर्थ स्थलों से जुड़ी कथा अवश्य होती है जो व्यक्ति को उस मंदिर व तीर्थ की विशेषता से अवगत कराती है. ऐसा ही एक प्राचीन मंदिर उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद शहर में संगम तट पर स्थित है.
इनके दर्शन के बिना स्नान होता है अधूरा
इस मंदिर के विषय में कहा जाता है की जो व्यक्ति संगम तट पर स्नान करने आता है स्नान करने के बाद इस मंदिर में हनुमान जी के दर्शन करने पर ही उसका स्नान का पुण्य लाभ प्राप्त होता है. इस मंदिर को कोतवाल हनुमान के नाम से जाना जाता है. यहां के महंत का कहना है की यहाँ प्रतिदिन सैकड़ों की संख्या में भक्त आते है. हनुमान जी का पूजन कर अपनी मनोकामना की पूर्ती की प्रार्थना करते है.
कन्नौज के एक व्यापारी ने करवाया था प्रतिमा का निर्माण
यह भारत का अकेला मंदिर है जहां हनुमान जी की 20 फिट लंबी मूर्ती लेटी अवस्था में है इस मंदिर के विषय में कहा जाता है कि कन्नौज के एक धनवान व्यापारी ने संतान सुख की कामना से हनुमान जी कि इस मूर्ती का निर्माण करवाया था. वह इस मूर्ती को तीर्थ यात्रा पर अपने साथ उत्तरी उपमहाद्वीप लेकर जाना चाहता था मगर रास्ते में संगम तट पर वह मूर्ती को स्नान करा रहा था तभी उसके हांथों से छूटकर मूर्ती गंगा नदी में गिर गई.
उसने उस मूर्ती को निकालने का कई प्रयास किया लेकिन मूर्ती नहीं निकली. अंत में वह निराश होकर वहीं रुक गया. रात में हनुमान जी ने उसे दर्शन देकर कहा की तुम मेरी इस मूर्ती को यहीं छोड़कर चले जाओ तुम्हारी सभी मनोकामना पूर्ण होगी. उस व्यापारी ने वैसा ही किया. कई वर्षों के बाद वह मूर्ती एक सिद्ध संत बालगिरी को मिली उन्होंने ही इस मंदिर का निर्माण करवाया.
हनुमान जी की इस मूर्ति के बारे में कहा जाता है कि अंग्रेज़ों के समय में उन्हें सीधा करने का प्रयास किया गया था, लेकिन वे असफल रहे. जैसे-जैसे लोगों ने ज़मीन को खोदने का प्रयास किया, मूर्ति नीचे धंसती चली गई.
ऐसा माना जाता है कि लंका पर विजय के बाद देवी सीता ने हनुमान जी को आराम करने के लिए कहा था. इसके बाद उन्होंने प्रयाग में आकर विश्राम किया था. ये वही पवित्र स्थान है.